Minimum Average Balance Rule: भारत के चार प्रमुख सरकारी बैंकों ने बचत खातों पर न्यूनतम बैलेंस की अनिवार्यता समाप्त कर दी है, जिससे लाखों ग्राहकों को राहत मिली है। जानें किन बैंकों ने यह कदम उठाया है और इसके क्या फायदे हैं।
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भारत में बैंकिंग सेवाओं का विस्तार करने और ग्राहकों को अधिक सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से, देश के चार प्रमुख सरकारी बैंकों ने बचत खातों पर न्यूनतम बैलेंस (Minimum Average Balance – MAB) रखने की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है। इससे लाखों खाताधारकों को बड़ी राहत मिली है, खासकर कम आय वाले और ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को।

इससे पहले, न्यूनतम बैलेंस न बनाए रखने पर ग्राहकों को जुर्माना देना पड़ता था, जो 10 रुपये से लेकर 600 रुपये तक हो सकता था। यह जुर्माना बैंक, खाते के प्रकार और शाखा के स्थान के आधार पर अलग-अलग होता था। न्यूनतम बैलेंस की अनिवार्यता हटाने से, ग्राहकों को अब इस वित्तीय बोझ से मुक्ति मिल गई है।
किन बैंकों ने हटाया नियम?
निम्नलिखित चार सरकारी बैंकों ने बचत खातों पर न्यूनतम बैलेंस की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है:
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI): एसबीआई ने सबसे पहले मार्च 2020 में ही यह कदम उठाया था।
पंजाब नेशनल बैंक (PNB): पीएनबी ने जुलाई 2025 से न्यूनतम बैलेंस की शर्त हटा दी है।
केनरा बैंक: केनरा बैंक ने मई 2025 में सभी प्रकार के बचत खातों, सैलरी अकाउंट और एनआरआई खातों के लिए न्यूनतम बैलेंस की अनिवार्यता समाप्त की।
इंडियन बैंक: इंडियन बैंक ने भी जुलाई 2025 से सभी बचत खातों पर न्यूनतम बैलेंस की शर्त हटा दी है।
क्या है बचत खाता और न्यूनतम बैलेंस?
Minimum Average Balance Rule: बचत खाता एक व्यक्तिगत बैंक खाता होता है जिसका मुख्य उद्देश्य पैसे की बचत करना होता है। इस खाते के साथ चेकबुक, डेबिट कार्ड, नेट बैंकिंग जैसी सुविधाएं भी मिलती हैं।
न्यूनतम बैलेंस (MAB) वह औसत राशि होती है जो खाताधारक को अपने बचत खाते में हर महीने बनाए रखनी होती थी। बैंकों का मानना था कि इससे खाते का संचालन सुचारू रूप से होता है और उन्हें रखरखाव में आसानी होती है।
ग्राहकों के लिए फायदे
न्यूनतम बैलेंस की अनिवार्यता हटाने से ग्राहकों को कई फायदे होंगे:
जुर्माने से राहत: अब ग्राहकों को न्यूनतम बैलेंस न बनाए रखने पर जुर्माना नहीं देना होगा।
बैंकिंग सेवाओं तक आसान पहुँच: इससे अधिक लोगों, खासकर कम आय वाले लोगों के लिए बैंकिंग सेवाओं तक पहुँच आसान होगी।
वित्तीय समावेशन को बढ़ावा: यह कदम वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में मदद करेगा।
बैंकों के लिए चुनौतियाँ
हालांकि, न्यूनतम बैलेंस हटाने से बैंकों के सामने कुछ चुनौतियाँ भी आ सकती हैं, जैसे:
राजस्व में कमी: न्यूनतम बैलेंस से होने वाली आय में कमी आ सकती है।
संचालन लागत में वृद्धि: खाते के रखरखाव की लागत बढ़ सकती है।
फिर भी, यह कदम ग्राहकों के लिए एक सकारात्मक कदम है और दीर्घकालिक रूप से बैंकिंग क्षेत्र के विकास में मदद करेगा। यह देखना होगा कि आगे चलकर अन्य बैंक भी इसी राह पर चलते हैं या नहीं।