उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर – Most Popular Temples in Uttarakhand

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नमस्कार दोस्तों आज हम आपको इस पोस्ट में उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों “Most Popular Temples in Uttarakhand” के बारे में बताने वाले हैं, यदि आप जानना चाहते हैं “Most Popular Temples In Uttarakhand” के बारे में तो इस पोस्ट को अंत तक जरुर पढ़ें |

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MOST POPULAR TEMPLES IN UTTARAKHAND

Table of Contents

Most Popular Temples in Uttarakhand

हम उत्तराखंड के  उन मंदिरों की बात करने वाले हैं जो मंदिर हमेशा चर्चा में रहते हैं। इन मंदिरों को लेकर लोगों की ऐसी आस्था है कि यहां से कभी भी कोई खाली हाथ नहीं लौटता है।
 
 
केदरानाथ और बद्रीनाथ मंदिर के बारे में आप जानते होंगे लेकिन साथ ही इनके कुछ और मंदिर ऐसे भी हैं जहां दर्शन करने के लिए भक्त कोसो दूर का सफर तय करने को भी तैयार होते हैं।
 
 
उत्तराखंड के इन मंदिरों के रहस्यों ने दुनियाभर के वैज्ञानिकों की नींद भी उड़ा रखी है क्योंकि कई बार वैज्ञानिकों ने इन मंदिरों के रहस्यों को जानने की कोशिश की लेकिन उनके हाथ सफलता नहीं लगी।
 
 
कई लोगों का मानना है कि वो इन मंदिरों से जुड़े रहस्यों को जानना भी नहीं चाहते हैं, वो यहां अपनी भक्ती के कारण आते हैं और खाली हाथ वापस नहीं लौटते हैं। तो चलिए आपको भी बताते हैं उत्तराखंड के मशहूर मंदिरों के बारे में।
 

जागेश्वर मंदिर – Jageshwer Temple, Alomora

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Jageshwer Temple Alomora
 
जागेश्वर भगवान सदाशिव के बारह ज्योतिर्लिगो में से एक है । यह ज्योतिलिंग “आठवां” ज्योतिलिंग माना जाता है | इसे “योगेश्वर” के नाम से भी जाना जाता है। ऋगवेद में ‘नागेशं दारुकावने” के नाम से इसका उल्लेख मिलता है। महाभारत में भी इसका वर्णन है । जागेश्वर के इतिहास के अनुसार उत्तरभारत में गुप्त साम्राज्य के दौरान हिमालय की पहाडियों के कुमाउं क्षेत्र में कत्युरीराज था | जागेश्वर मंदिर का निर्माण भी उसी काल में हुआ | इसी वजह से मंदिरों में गुप्त साम्राज्य की झलक दिखाई देती है | मंदिर के निर्माण की अवधि को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा तीन कालो में बाटा गया है “कत्युरीकाल , उत्तर कत्युरिकाल एवम् चंद्रकाल” | अपनी अनोखी कलाकृति से इन साहसी राजाओं ने देवदार के घने जंगल के मध्य बने जागेश्वर मंदिर का ही नहीं बल्कि अल्मोड़ा जिले में 400 सौ से अधिक मंदिरों का निर्माण किया है|

चन्द्रबदनी मंदिर  – Chandrabadni Temple, Tehri Garhwal

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Chandrabadni Temple, Tehri Garhwal

चन्द्रबदनी मंदिर देवी सती की शक्तिपीठों में से एक एवम् पवित्र धार्मिक स्थान है | चन्द्रबदनी मंदिर टिहरी मार्ग पर चन्द्रकूट पर्वत पर स्थित लगभग आठ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है | यह मंदिर देवप्रयाग से 33 कि.मी. की दुरी पर स्थित है | आदि जगतगुरु शंकराचार्य ने यहां शक्तिपीठ की स्थापना की । धार्मिक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक दृष्टि में चन्द्रबदनी उत्तराखंड की शक्तिपीठों में महत्वपूर्ण है । स्कंदपुराण, देवी भागवत व महाभारत में इस सिद्धपीठ का विस्तार से वर्णन हुआ है । प्राचीन ग्रन्थों में भुवनेश्वरी सिद्धपीठ के नाम से चन्द्रबदनी मंदिर का उल्लेख है । चन्द्रबदनी मंदिर से सुरकंडा , केदारनाथ , बद्रीनाथ चोटी आदि का बड़ा ही मन मोहक , आकर्षक दृश्य दिखाया देता है | मंदिर परिसर में पुजार गांव के निवासी ब्राहमण ही मंदिर में पूजा अर्चना करने आते हैं ।

गुप्तकाशी मंदिर – Guptkashi Temple, Rudraprayag

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Guptkashi Temple, Rudraprayag

गुप्तकाशी मंदिर एक प्राचीन एवम् लोकप्रिय धर्मिक मंदिर है , जो कि उत्तराखंड में रुद्रप्रयाग जिले के गढ़वाल हिमालय में केदार-खंड में समुन्द्र स्तर से लगभग 1319 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है | यह मंदिर केदारनाथ पर्वत के मार्ग पर मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित है |गुप्तकाशी मंदिर भगवान शिव और भगवान विश्वनाथ को समर्पित है | गुप्तकाशी मंदिर के निकट में एक छोटा मंदिर भी स्थापित है , जो कि भगवान विश्वनाथ के लिए बनाया गया है | यहां एक अन्य प्रसिद्ध मंदिर “अर्धनारीश्वर” को समर्पित है जहाँ आधा पुरुष , आधा महिला भगवान शिव और देवी पार्वती का रूप विराजित है | यह मंदिर एक महत्वपूर्ण मंदिर है क्यूंकि यह मंदिर हिंदू तीर्थयात्रीयो में छोटा चार-धाम के रूप में भी माना जाता है |

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मध्यमहेश्वर मंदिर – Madhyamaheshwar Temple, Garhwal

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Madhyamaheshwar Temple, Garhwal

मध्यमहेश्वर मंदिर , उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय के मंसुना गांव में स्थित प्रसिद्ध एवम् धार्मिक मंदिर भगवान शिव को समर्पित हिंदू मंदिर है । यह मंदिर समुन्द्र तल से 3,497 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है | मंदिर पंच केदार तीर्थ यात्रा में चौथा मंदिर है। मध्यमहेश्वर मंदिर को “मदमाहेश्वर” के नाम से भी जाना जाता है| मध्यमहेश्वर मंदिर में पूजा करने के बाद केदारनाथ, तुंगनाथ और रुद्रनाथ के मंदिरों का यात्रा की जाती हैं और साथ ही साथ कल्पेश्वर मंदिर का दौरा भी किया जाता है | इस मंदिर को पांडवो के द्वारा निर्मित माना जाता है एवम् यह भी माना जाता है कि भीम ने भगवान शिव की पूजा करने के लिए इस मंदिर का निर्माण किया था | मंदिर प्रांगण में “मध्य” या “बैल का पेट” या “नाभि (नाभि)” भगवान शिवजी का दिव्य रूप माना जाता है |

त्रियुगीनारायण मंदिर – Triyuginarayan Temple, Rudraprayag

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Triyuginarayan Temple, Rudraprayag

उत्तराखंड जो ऐसे ही कई धार्मिक और पौराणिक कथाओं के लिए प्रसिद्ध है । यहाँ के कई स्थल सिर्फ पर्यटक स्थल के रूप में ही नहीं , पवित्र तीर्थस्थलों के रूप में भी लोकप्रिय हैं। ऐसा ही एक स्थल रुद्रप्रयाग में स्थित है जिसे “त्रियुगीनारायण मंदिर” से नाम से जाना जाता है | यह मंदिर काफी प्रसिद्ध एवम् लोकप्रिय माना जाता है | उत्तराखंड का त्रियुगीनारायण मंदिर ही वह पवित्र और विशेष पौराणिक मंदिर है और यह रुद्रप्रयाग के प्रमुख स्थानों में से एक मुख्य स्थल है । यह स्थान रुद्रप्रयाग जिले का एक भाग है | यह मंदिर उत्तराखंड की वादियों के बीच अत्यधिक आकर्षित नज़र आता है | चारो तरफ हरयाली के बीच में स्थित मंदिर में आये हुए यात्रीयो , भक्तो के लिए यह मंदिर एक शांतिमय और सुरमय समां बाँध देता है |

नीलकंठ महादेव मंदिर – Neelkanth Mahadev Temple, Rishikesh

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Neelkanth Mahadev Temple, Rishikesh
 
नीलकंठ महादेव मंदिर , भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन पवित्र मंदिर है , जो कि उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में ऋषिकेश के स्वर्गाश्रम (राम झुला या शिवानन्द झुला) से किलोमीटर की दुरी पर मणिकूट पर्वत की घाटी पर स्थित है | मणिकूट पर्वत की गोद में स्थित मधुमती (मणिभद्रा) व पंकजा (चन्द्रभद्रा) नदियों के ईशानमुखी संगम स्थल पर स्थित नीलकंठ महादेव मन्दिर एक प्रसिद्ध धार्मिक केन्द्र है । नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश के सबसे पूज्य मंदिरों में से एक है | यह मंदिर समुन्द्रतल से 1675 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है | नीलकंठ महादेव मंदिर में बड़ा ही आकर्षित शिव का मंदिर बना है एवम् मंदिर के बाहर नक्काशियो में समुन्द्र मंथन की कथा बनायी गयी है | नीलकंठ महादेव मंदिर के मुख्य द्वार पर द्वारपालो की प्रतिमा बनी है | मंदिर परिसर में कपिल मुनि और गणेश जी की मूर्ति स्थापित है |

कालीमठ मंदिर – Kalimath Temple, Rudraprayag

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Kalimath Temple, Rudraprayag

देवभूमि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के केदारनाथ की चोटियों से घिरा हिमालय में सरस्वती नदी के किनारे स्थित प्रसिद्ध शक्ति सिद्धपीठ श्री कालीमठ मंदिर स्थित है | यह मंदिर समुन्द्रतल से 1463 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है | कालीमठ मंदिर रुद्रप्रयाग जिले के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है एवम् इस मंदिर को भारत के प्रमुख सिद्ध शक्ति पीठों में से एक माना जाता है । कालीमठ मंदिर हिंदू “देवी काली” को समर्पित है । कालीमठ मंदिर तन्त्र व साधनात्मक दृष्टिकोण से यह स्थान कामख्या व ज्वालामुखी के सामान अत्यंत ही उच्च कोटि का है । स्कन्दपुराण के अंतर्गत केदारनाथ के 62 अध्धाय में माँ काली के इस मंदिर का वर्णन है | कालीमठ मंदिर से 8 किलोमीटर की खड़ी ऊंचाई पर स्थित दिव्य चट्टान को ‘काली शिला’ के रूप में जाना जाता है

सुरकंडा देवी मंदिर – Surkanda Devi Temple, Dhanaulti, Tehri Garhwal

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Surkanda Devi Temple, Dhanaulti, Tehri Garhwal

सुरकंडा देवी मंदिर प्रमुख हिन्दू मंदिर है , जो कि उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जनपद में जौनुपर के सुरकुट पर्वत पर स्थित है एवम् यह मंदिर धनोल्टी और कानाताल के बीच स्थित है । चंबा-मसूरी रोड पर कद्दूखाल कस्बे से डेढ़ किमी पैदल चढ़ाई चढ़ कर सुरकंडा माता मंदिर पहुंचा जाता है । सुरकंडा देवी मंदिर समुद्रतल से करीब तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर बना है । यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है , जो कि नौ देवी के रूपों में से एक है । सुरकंडा देवी मंदिर51 शक्ति पीठ में से है । सुरकंडा देवी मंदिर में देवी काली की प्रतिमा स्थापित है । सुरकंडा देवी के मंदिर का उल्लेख केदारखंड और स्कन्दपुराण में भी मिलता है | सुरकंडा देवी मंदिर ठीक पहाड़ की चोटी पर है | सुरकंडा देवी मंदिर घने जंगलों से घिरा हुआ है और इस स्थान से उत्तर दिशा में हिमालय का सुन्दर दृश्य दिखाई देता है।

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कोटेश्वर महादेव मंदिर – Koteshwar Mahadev Temple, Rudraprayag

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Koteshwar Mahadev Temple, Rudraprayag
 
कोटेश्वर मंदिर हिन्दुओ का प्रख्यात मंदिर है , जो कि रुद्रप्रयाग शहर से 3 कि.मी. की दुरी पर स्थित एक प्राचीन मंदिर है | कोटेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है | कोटेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण 14वि शताब्दी में किया गया था , इसके बाद 16 वी और 17 वी शताब्दी में मंदिर का पुनः निर्माण किया गया था | चारधाम की यात्रा पर निकले ज्यादातर श्रद्धालु इस मंदिर को देखते हुए ही आगे बढते है , गुफा के रूप में मौजूद यह मंदिर अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थित है | मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने केदारनाथ जाते समय , इस गुफा में साधना की थी और यह मूर्ति प्राकर्तिक रूप से निर्मित है | गुफा के अन्दर मौजूद प्राकृतिक रूप से बनी मूर्तियाँ और शिवलिंग यहाँ प्राचीन काल से ही स्थापित है |

चंडी देवी मंदिर – Chandi Devi Temple, Haridwar

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Chandi Devi Temple, Haridwar
 
चंडी देवी मंदिर उत्तराखंड राज्य के पवित्र शहर हरिद्वार में स्थित प्रसिद्ध मंदिर है, जो कि चंडी देवी को समर्पित है | यह मंदिर हिमालय की दक्षिणी पर्वत श्रंखला के पहाडियों के पूर्वी शिखर पर मौजूद नील पर्वत के ऊपर स्थित है | यह मंदिर भारत में स्थित प्राचीन मंदिर में से एक है | चंडी देवी मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है । चंडी देवी मंदिर का निर्माण 1929 में सुचात सिंह , कश्मीर के राजा ने अपने शासनकाल के दौरान करवाया था परंतू मंदिर में स्थित चंडी देवी की मुख्य मूर्ति की स्थापना 8वी शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने की थी , जो कि हिन्दू धर्म के सबसे बड़े पुजारियों में से एक है | इस मंदिर को “नील पर्वत” तीर्थ के नाम से जाना जाता है |

चितई गोलू देवता मंदिर – Chitai Golu Devta Temple, Almora

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Chitai Golu Devta Temple, Almora
 
उत्तराखंड को देव भूमि के नाम से भी जाना जाता है , क्योकिं उत्तराखंड में कई देवी देवता वास करते है | जो कि हमारे ईष्ट देवता भी कहलाते है जिसमे से एक है , गोलू देवता |

जिला मुख्यालय अल्मोड़ा से आठ किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ हाईवे पर न्याय के देवता कहे जाने वाले गोलू देवता का मंदिर स्थित है, इसे चितई ग्वेल भी कहा जाता है | सड़क से चंद कदमों की दूरी पर ही एक ऊंचे तप्पड़ में गोलू देवता का भव्य मंदिर बना हुआ है। मंदिर के अन्दर घोड़े में सवार और धनुष बाण लिए गोलू देवता की प्रतिमा है।

कार्तिक स्वामी मंदिर – Kartik Swami Temple, Rudraprayag

 
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Kartik Swami Temple, Rudraprayag

कार्तिक स्वामी मंदिर देवभूमि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में कनक चौरी गाँव से 3 कि.मी.की दुरी पर क्रोध पर्वत पर स्थित है | यह मंदिर समुद्र की सतह से 3048 मीटर की ऊँचाई पर स्थित शक्तिशाली हिमालय की श्रेणियों से घिरा हुआ है | कार्तिक स्वामी मंदिर रुद्रप्रयाग जिलेका सबसे पवित्र पर्यटक स्थलों में से एक है | यह मंदिर उत्तराखंड का सिर्फ एकमात्र मंदिर है , जो कि भगवान कार्तिक को समर्पित है | भगवान कार्तिकेय का अति प्राचीन “कार्तिक स्वामी मंदिर” एक दैवीय स्थान होने के साथ साथ एक बहुत ही खूबसूरत पर्यटक स्थल भी है । मंदिर भगवान् शिव के जयेष्ठ पुत्र “भगवान कार्तिक” को समर्पित है |

बिनसर महादेव मंदिर – Binsar Mahadev Temple, Ranikhet

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Binsar Mahadev Temple, Ranikhet
 
बिनसर महादेव मंदिर एक लोकप्रिय हिंदू मंदिर है । यह मंदिर रानीखेत से लगभग 20 किमीकी दूरी पर स्थित है । कुंज नदी के सुरम्य तट पर करीब साढ़े पांच हजार फीट की ऊंचाई पर बिनसर महादेव का भव्य मंदिर है | समुद्र स्तर या सतह से 2480 मीटर की ऊंचाई पर बना यह मंदिर हरे-भरे देवदार आदि के जंगलों से घिरा हुआ है । हिंदू भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 10 वीं सदी में किया गया था | महेशमर्दिनी, हर गौरी और गणेश के रूप में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियों के साथ निहित, इस मंदिर की वास्तुकला शानदार है | बिनसर महादेव मंदिर क्षेत्र के लोगों का अपार श्रद्धा का केंद्र है। यह भगवान शिव और माता पार्वती की पावन स्थली मानी जाती है। प्राकृतिक रूप से भी यह स्थान बेहद खूबसूरत है । हर साल हजारों की संख्या में मंदिर के दर्शन के लिए श्रद्धालु आते हैं |

दूनागिरी मंदिर – Doonagiri Temple, Dwarahat

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Doonagiri Temple Dwarahat
 
उत्तराखंड जिले में बहुत पौराणिक और सिद्ध शक्तिपीठ है | उन्ही शक्तिपीठ में से एक है द्रोणागिरी वैष्णवी शक्तिपीठ | वैष्णो देवी के बाद उत्तराखंड के कुमाऊं में “दूनागिरि” दूसरी वैष्णो शक्तिपीठ है | उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट क्षेत्र से 15 km आगे माँ दूनागिरी माता का मंदिर अपार आस्था और श्रधा का केंद्र है |मंदिर निर्माण के बारे में  यह कहा जाता है कि त्रेतायुग में जब लक्ष्मण को मेघनात के द्वारा शक्ति लगी थी | तब सुशेन वेद्य ने हनुमान जी से द्रोणाचल नाम के पर्वत से संजीवनी बूटी लाने को कहा था | हनुमान जी उस स्थान से पूरा पर्वत उठा रहे थे तो वहा पर पर्वत का एक छोटा सा टुकड़ा गिरा और फिर उसके बाद इस स्थान में दूनागिरी का मंदिर बन गया |

कसार देवी मंदिर – Kassar Devi Temple, Almora

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Kasar Devi Temple, Almora
 
शक्ति के आलोकिक रूप का प्रत्यक्ष दर्शन उत्तराखंड देवभूमि में होता है | उत्तराखंड राज्य अल्मोड़ा जिले के निकट “कसार देवी” एक गाँव है | जो अल्मोड़ा क्षेत्र से 8 km की दुरी पर काषय (कश्यप) पर्वत में स्थित है | यह स्थान “कसार देवी मंदिर” के कारण प्रसिद्ध है | यह मंदिर, दूसरी शताब्दी के समय का है । उत्तराखंड के अल्मोडा जिले में मौजूद माँ कसार देवी की शक्तियों का एहसास इस स्थान के कड़-कड़ में होता है | अल्मोड़ा बागेश्वर हाईवे पर“कसार” नामक गांव में स्थित ये मंदिर कश्यप पहाड़ी की चोटी पर एक गुफानुमा जगह पर बना हुआ है |कसार देवी मंदिर में माँ दुर्गा साक्षात प्रकट हुयी थी | मंदिर में माँ दुर्गा के आठ रूपों में से एक रूप “देवी कात्यायनी” की पूजा की जाती है |

दूधाधारी बर्फ़ानी मंदिर – Doodhadhari Barfani Temple, Haridwar

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Doodhadhari Barfani Temple, Haridwar
 
दूधाधारी बर्फ़ानी मंदिर हरिद्वार में सबसे सुंदर मंदिर के रूप में माना जाता है , यह शहर दूधाधारी बर्फ़ानी बाबा आश्रम के शानदार दूधाधारी बर्फ़ानी मंदिर के लिए प्रसिद्ध है । यह मंदिर दूधाधारी बर्फ़ानी आश्रम में स्थित है | हरिद्वार में दूधाधारी बरफ़ानी का मंदिर आकर्षण का एक बड़ा केंद्र है | मंदिर परिसर के अंदर, अन्य मंदिर भी हैं, साथ ही विभिन्न हिंदू देवताओं और देवी-देवताओं की मूर्ति भी विराजित है। इनमें से, राम-सिता मंदिर और हनुमान मंदिर का दौरा करने योग्य है । राम-सीता और हनुमान के पवित्र मंदिरों के साथ, दूधाधारी बरफ़ानी मंदिर अपनी स्थापत्य कला के लिए जाना जाता है ।

नंदा देवी मंदिर –  Nanda  Devi Temple

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Nanda Devi Temple, Almora
 
कुमाऊं क्षेत्र के उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले के पवित्र स्थलों में से एक “नंदा देवी मंदिर” का विशेष धार्मिक महत्व है । इस मंदिर में “देवी दुर्गा” का अवतार विराजमान है | समुन्द्रतल से 7816 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर चंद वंश की “ईष्ट देवी” माँ नंदा देवीको समर्पित है | नंदा देवी माँ दुर्गा का अवतार और भगवान शंकर की पत्नी है और पर्वतीय आँचल की मुख्य देवी के रूप में पूजी जाती है | नंदा देवी गढ़वाल के राजा दक्षप्रजापति की पुत्री है, इसलिए सभी कुमाउनी और गढ़वाली लोग उन्हें पर्वतांचल की पुत्री मानते है | कई हिन्दू तीर्थयात्रा के धार्मिक रूप में इस मंदिर की यात्रा करते है क्यूंकि नंदा देवी को “बुराई के विनाशक” और कुमुण के घुमन्तु के रूप में माना जाता है | इसका इतिहास 1000 साल से भी ज्यादा पुराना है । नंदा देवी का मंदिर, शिव मंदिर की बाहरी ढलान पर स्थित है
 

मनसा देवी मंदिर – Mansa Devi Temple, Haridwar

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Mansa Devi Temple, Haridwar
 

मनसा देवी मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है जो कि हरिद्वार में हर की पौड़ी के पास गंगा किनारे पहाड़ी पर स्थित श्रधा एवम् आस्था का केंद्र है | यह धार्मिक स्थल हरिद्वार शहर से लगभग 3 किमी दूर स्थित है | यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है | हरिद्वार के “चंडी देवी” और “माया देवी” के साथ “मनसा देवी” को भी सिद्ध पीठों में प्रमुख माना जाता है | मनसा देवी को शाक्ति का एक रूप माना जाता है । यह मंदिर माँ मनसा को समर्पित है, जिन्हे वासुकी नाग की बहन बताया गया है | कहते है कि माँ मनसा शक्ति का ही एक रूप है , जो कश्यप ऋषि की पुत्री थी , जो उनके मन से अवतरित हुई थी और मनसा कहलवाई |

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केदारनाथ मन्दिर – Kedarnath Temple, Rudraprayag

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Kedarnath Temple Rudraprayag
 
केदारनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखंड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है।

उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है |

यह उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है, जो कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है। ये शिलाखंड भूरे रंग की हैं। मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है। इसका गर्भगृह प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है ।

केदारनाथ धाम और मंदिर तीन तरफ पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड।

बद्रीनाथ मंदिर – Badrinath Temple

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Badrinath Temple
 
बद्रीनाथ या बद्रीनारायण मंदिर एक हिन्दू मंदिर है, यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है , ये मंदिर भारत में उत्तराखंड में बद्रीनाथ शहर में स्थित है | 

बद्रीनाथ मंदिर , चारधाम और छोटा चारधाम तीर्थ स्थलों में से एक है |यह अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण नामक दो पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित है । ये पंच-बद्री में से एक बद्री हैं। उत्तराखंड में पंच बदरी, पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टि से तथा हिन्दू धर्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं | यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बद्रीनाथ को समर्पित है | ऋषिकेश से यह 214 किलोमीटर की दुरी पर उत्तर दिशा में स्थित है | बद्रीनाथ मंदिर शहर में मुख्य आकर्षण है | प्राचीन शैली में बना भगवान विष्णु का यह मंदिर बेहद विशाल है | इसकी ऊँचाई करीब 15 मीटर है | पौराणिक कथा के अनुसार , भगवान शंकर ने बद्रीनारायण की छवि एक काले पत्थर पर शालिग्राम के पत्थर के ऊपर अलकनंदा नदी में खोजी थी | वह मूल रूप से तप्त कुंड हॉट स्प्रिंग्स के पास एक गुफा में बना हुआ था |

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